दबी हुई इच्छाएँ
जब जब था अपराध का पहरा
डूबती रही इच्छाओं की आवाज़ ,
दो मिनट खुली हवा में सांस लेने को
लटकती रहती थी आस।
जहाँ एक तरफ स्त्री का आँचल लूटा
वहीँ दूसरी तरफ अपराध ने यमराज का रूप लिया ,
खुले अकेले राहों में घूमना
तो मनो उपहास का पाठ बना ।
हर इच्छा दबी ,हर आवाज़ दबी
न जाने कितने
नौजवानों की प्रतिभायें दबी
अपराध के इस काले बदल ने
आगे बढ़ने की एक आस तक नहीं छोड़ी।
एक अजब सी एहसास ने हरकत की है
फिर उसी तूफ़ान ने अंगड़ाई ली है
विश्व को जिस धरती ने ज्ञान दिया
उस धरती को विनाश की क़दमों की आहट सुनाई दी है।