नानाजी
की प्याली की आखरी ख्वाइश
उन्ही परिपक्तव हाथों से इक आखरी बार थाम्ब ले मुझे
उन्ही सुलझे हुए लफ़्ज़ों से इक आखरी बार स्पर्श करले मुझे
सुनने दे मुझे वो सारी तेरी ज्ञान से भरी बातों को
आखिर एक आखरी बार मुझे भी दुनिया जीने का मौका दे
अब तू नहीं तो कौन मेरी महत्ता को पूरा करेगा
अब तू नहीं तो कौन मेरी रात की अंगड़ाई तोड़ेगा
वही पड़े रहूंगी किसी दरवाजे के पीछे धूल खाते हुए
अब तू नहीं तो कौन इस सुबह की प्याली को याद करेगा
उन्ही अख़बार की ख़बरों से एक आखरी बार अवगत करा मुझे
उन्ही महत्वकांशी विचारों से एक आखरी बार सचेत कर मुझे
ऐसी कौन सी खबर नहीं थी जिसका ज्ञान नहीं था तुझे
तेरी उन्ही बातों को सुन लोग ग्यानी बुलाने लगे थे मुझे
ऑफिस में आये मेहमानों क़ी बातों से
तेरी सामर्थ्य का अनुभव होता था मुझे
और हर बार तेरी होटों से स्पर्श से
तेरी असाधारण छमताओं का अहसास होता था मुझे
तेरी हौसले से भरी सॉंसों से मैं निखरती थी
तेरी जूनून से भरी आँखों से मैं जिन्दा थी
अब तेरे बिना क्या ही आखरी खवाइश रखूं मैं
मैं तो तेरे साथ जाने की ख्वाइश में जलती थी
बुलाले अपने ददई को अपने संग वापस
इक आखरी बार फिर से मुझे दोनों की खिलखिलाहट सुनने दे
बुलाले अपने सारी ज़िन्दगी की यादों को
एक आखरी बार फिर से मुझे तेरे संग चलने दे