Thursday, 4 April 2019



नानाजी 
की प्याली की आखरी ख्वाइश 


उन्ही परिपक्तव  हाथों से इक आखरी बार थाम्ब ले मुझे 
उन्ही सुलझे हुए लफ़्ज़ों से इक आखरी बार स्पर्श करले मुझे 
सुनने दे मुझे वो सारी तेरी ज्ञान से भरी बातों को 
आखिर एक आखरी बार मुझे भी दुनिया जीने का मौका दे 

अब तू नहीं तो कौन मेरी महत्ता को पूरा करेगा 
अब तू नहीं तो कौन मेरी रात की अंगड़ाई तोड़ेगा 
वही पड़े रहूंगी किसी दरवाजे के पीछे धूल खाते हुए 
अब तू नहीं तो कौन इस सुबह की प्याली को याद करेगा 

उन्ही अख़बार की ख़बरों से एक आखरी बार अवगत करा मुझे 
उन्ही महत्वकांशी विचारों से एक आखरी बार सचेत कर मुझे 
ऐसी कौन सी खबर नहीं थी जिसका ज्ञान नहीं था तुझे 
तेरी उन्ही बातों को  सुन लोग ग्यानी  बुलाने लगे थे मुझे 

ऑफिस में आये मेहमानों क़ी बातों से 
तेरी सामर्थ्य  का अनुभव होता था मुझे 
और हर बार तेरी होटों से स्पर्श से 
तेरी असाधारण छमताओं का अहसास होता था मुझे 

तेरी  हौसले से भरी सॉंसों से मैं  निखरती थी 
तेरी जूनून से भरी आँखों से मैं जिन्दा थी 
अब तेरे बिना क्या ही आखरी खवाइश रखूं मैं 
मैं तो  तेरे साथ जाने की ख्वाइश में जलती थी  

बुलाले अपने ददई को अपने संग वापस 
इक आखरी बार फिर से मुझे दोनों की खिलखिलाहट सुनने दे
बुलाले अपने सारी ज़िन्दगी की यादों को 
एक आखरी बार फिर से मुझे तेरे संग चलने दे 









No comments:

Post a Comment