Thursday, 28 February 2019

शब्द खफा है मुझसे


उन कहे लफ़्ज़ों का इंतज़ार है
खुशनुमा सा अहसास है,
 फिर भी कंठ तेरे लिए बेताब है 
क्यूंकि शब्द खफा है मझसे 

व्यक्त करने है अनेक
पर अपनी बातों को समेट 
यही  मन मुघ्द होके बैठा हूँ
क्यूंकि शब्द खफा है मुझसे

तुझे खुद पे अहंकार  है
पर मेरी  सोच तेरे बिन निराकार  है
अब चिंतन करना भी निरर्थक है 
क्यूंकि शब्द खफा है मुझसे

 है तो अहसासों का सागर भीतर
फिर भी कविताओं का प्याला सूखा है
क्यूंकि शब्द खफा है मुझसे






Sunday, 10 February 2019

तुझे  उतारूं शब्दों में भी भला कैसे


सौ तरीके अपना लिए 
पर समां न पाया तुझे अपनी  लिखावट में 
मानों अथार सागर है
प्याले में उसको भरूँ तो भी कैसे  

तेरी खूबसूरती है पेड़ों के पत्तों पे ओस जैसे 
तुझे  उतारूं शब्दों में भी भला कैसे

कोई एक पेह्लूं तो हो 
जिसे अपनी आँखों में समां लूँ 
पर तेरी हर बात है उन टूटते हुए सितारों जैसे 
की, पलक झबकते ही गायब होते 
एक खूबसूरत लम्हा  जैसे

तेरी खूबसूरती है पेड़ों के पत्तों पे ओस जैसे 
तुझे  उतारूं शब्दों में भी भला कैसे

तुझे लिखते लिखते मदहोशी का आलम छाने लगा 
मानो तेरी हर बात को पढ़ते पढ़ते 
अफीम का मौसम आने लगा 
अब भला उस नशे को तेरे नशे से तौलूं कैसे 

तेरी खूबसूरती है पेड़ों के पत्तों पे ओस जैसे 
तुझे  उतारूं शब्दों में भी भला कैसे