Sunday, 10 February 2019

तुझे  उतारूं शब्दों में भी भला कैसे


सौ तरीके अपना लिए 
पर समां न पाया तुझे अपनी  लिखावट में 
मानों अथार सागर है
प्याले में उसको भरूँ तो भी कैसे  

तेरी खूबसूरती है पेड़ों के पत्तों पे ओस जैसे 
तुझे  उतारूं शब्दों में भी भला कैसे

कोई एक पेह्लूं तो हो 
जिसे अपनी आँखों में समां लूँ 
पर तेरी हर बात है उन टूटते हुए सितारों जैसे 
की, पलक झबकते ही गायब होते 
एक खूबसूरत लम्हा  जैसे

तेरी खूबसूरती है पेड़ों के पत्तों पे ओस जैसे 
तुझे  उतारूं शब्दों में भी भला कैसे

तुझे लिखते लिखते मदहोशी का आलम छाने लगा 
मानो तेरी हर बात को पढ़ते पढ़ते 
अफीम का मौसम आने लगा 
अब भला उस नशे को तेरे नशे से तौलूं कैसे 

तेरी खूबसूरती है पेड़ों के पत्तों पे ओस जैसे 
तुझे  उतारूं शब्दों में भी भला कैसे
 

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